दिल्ली सल्तनत (1206 -1526 ई.) In HINDI



                                     दिल्ली सल्तनत (1206 -1526 ई.)



भारत पर पहला सफल मुस्लिम आक्रमण मुहम्मद - बिन -कासिम ने 712ई. में किया था उसने सिंध और मुल्तान को जित लिया था। मुहम्मद गजनवी ने 1001 -1027 के बीच 17 बार आक्रमण किये। इनमे से 1025 का सोमनाथ आक्रमण   सबसे प्रसिद्ध था। मुहम्मद गौरी को भारत में तुर्क सत्ता का संस्थापक माना जाता है। 
दिल्ली सल्तनत में कुल 5 वंशों ने शासन किया था।
1. गुलाम वंश 1206 -1290 
2. खिलजी वंश 1290 -1320 
3. तुगलग वंश 1320 -1414 
4. सैय्यद वंश 1414 -1451 
5. लोदी वंश 1414 -1526 

गुलाम वंश 
गुलाम वंश का संस्थापक कुतुबुदीन ऐबक था। कुतुबुदीन ऐबक को उसकी उदारता के कारण लाखबख्श लाखों में दान करने वाला कहा जाता है। 
ऐबक ने ख्वाज़ा कुतुबुदीन बख्तियार काकी की स्मृति में कुतुबमीनार का निर्माण प्रारम्भ करवाया था। इसे इल्तुतमिश ने पूरा करवाया था। 
हसन निजामी और फक्र -ए -मुदब्विर को ऐबक का संरक्षण प्राप्त था। 
1210 ई.चौगान खेलते समय घोड़े से अचानक गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। 

इल्तुतमिश  (1210-1236 )
इल्तुतमिश ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। कुतुबुदीन  ऐबक  की मृत्यु के समय इल्तुतमिश बदायूँ का सूबेदार था। 
इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद को वंशानुगत बनाया था 
इसने अपने विद्रोहियों से निपटने के लिए "तुर्कान-ए-चहलगानी " या "चालीसा "(चालीस अमीरों का समूह) कहा जाता था। 
इसने कुतुबमीनार का निर्माण को पूरा करवाया। इसने अपनी राजढानी लाहौर से दिल्ली को स्थानांतरित की। 
इसने इकत्ता  शासन प्रणाली को चलाया।
इसने सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखवाने की परम्परा को विकसित किया। 

रजिया सुल्तान ( 1236-1240 )
रजिया भारत की प्रथम महिला मुस्लिम शासिका थी। 
रजिया के मामले में पहली बार दिल्ली की जनता ने उत्तराधिकार के प्रश्न पर स्वयं निर्णय लिया था। 
रजिया ने पर्दे को त्याग कर मर्दों की भाँति कुबा तथा कुलाह पहनकर सिंहासन पर बैठने लगी। 

बलबन ( 1265 -1287 )
बलबन ने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिये "रक्त एवं लौह "की नीति अपनाई। 
इसने चालीसा दल को समाप्त कर दिया। 
बलबन ने मंगोलो का मुकाबला करने के लिए एक सैन्य विभाग "दीवान -ए -अर्ज " की स्थापना की थी। 
उसने सिजदा और पाबोस की प्रथा को अपने दरबार में शुरू किया। 

खिलजी वंश ( 1290 -1320 )

खिलजी वंश की स्थापना जलालुदीन  फिरोज खिलजी (1290 -1296 ) ने की थी।  इसने अपनी राजधानी दिल्ली के निकट किलोखरी को बनाया। 

अलाउदीन खिलजी (1296 -1316 )
अलाउदीन का मूल नाम अली गुरशास्प था।  उसने सिकंदर द्वितीय  सानी की उपाधि धारण की थी। 
अलाउदीन खिलजी प्रथा ऐसा सुल्तान था जिसने दक्षिण भारत पर आक्रमण किया और उसको अपने अधीन किया। उसने प्रथम बार बाजार नियंत्रण नीति  को लागु किया और प्रथम बार उसने भूमि की माप के आधार पर लगन निर्धारित किया। 
उसने सैन्य व्यवस्था  में सुधर किया। इसके लिये "दाग एवं चेहरा प्रथा " की शुरुआत की। 
अपने विरोधियों से निपटने के लिए " रक्त और तलवार की नीति" अपनाई। 
उसने दिवान - ए -रियासत  नामक नवीन विभाग की स्थापना की। 

तुगलक वंश (1316 -1414 )
इस वंश की स्थापना गयासुद्दीन तुगलक (गाजी मलिक )ने 1320 ई  में की थी। 
अलाउदीन की कठोर नीतियों के विपरीत गयासुदीन ने उदारता की नीति अपनाई थी ,जिसे बर्नी ने रस्मेमियान अथवा मध्यपंथी नीति कहा है। 
सिंचाई के लिए नहर निर्माण करवाने वाला गयासुदीन  शासक था। 

मुहम्मद बिन तुगलक ( 1325 -1351ई.) 
इसका मूल नाम जौना खाँ था।  
कुछ इतिहासकारों ने  मुहम्मद बिन तुगलक को पागल ,रक्त -पिपासु कहा है। 
उसने सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन करवाया। 
इसके शासन   काल में मोरक्को का यात्री  इबनबतूता भारत  आया था। 
उसने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद स्थान्तरित की थी। पर बाद में पून:दिल्ली ही बनी रही। 
उसने कृषि के  विकास के लिए एक नवीन कृषि विभाग " दिवान -ए -अमीर कोही "की स्थापना की। 

फिरोजशाह तुगलक (1351 -88 ई.)
 फिरोजशाह तुगलक ने एक दान विभाग 'दिवान -ए -खैरान 'की स्थापना की थी। उसने एक दस विभाग 'दिवान -ए -बदगान 'की भी स्थापना की थी। वह पहला सुल्तान था जिसने ब्राह्मणों पर जजिया कर लगाया था। 
फिरोजशाह तुगलक ने अपनी आत्मकथा 'फुतुहात -ए -फिरोजशाही 'की रचना की थी। 
फिरोजशाह तुगलक ने सिंचाई की सुविधा के लिए कई नहरों का निर्माण करवाया। वह पहला सुल्तान था जिसने प्रजा से सिचाई कर 'शर्ब 'वसूल किया। 

मुहम्मदशाह तुगलक 
मुहम्मद शाह तुगलक तुगलक वंश का अंतिम शासक था ,जिसके शासनकाल में तैमूरलंग का दिल्ली पर आक्रमण 1398 हुआ था। 


सैय्यद वंश (1414-1451 ई.) 

सैय्यद वंश की स्थापना खिज्र खां के द्वारा की गयी थी। खिज्र खां ने कभी भी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। वह रैयत -ए -आला की उपाधि से ही संतुष्ट था। उसने अपने सिक्कों पर तुगलक शासकों का ही नाम रहने दिया। 

मुबारकशाह ( 1421 -1434 )
मुबारकशाह ने शाह की उपाधि धारण की ,अपने नाम का खुत्बा पढ़वाया और अपने नाम के सिक्के भी चलवाये। 
उसने तारीखे मुबारक़शाही के लेखक याहिया बिन सरहिंदी की संरक्ष्ण दिया। 

मुहम्मदशाह (1434 -1445 ई. )
मुहम्मद शाह ने बहलोल का सम्मान किया और उसे अपना पुत्र कहकर पुकारा और खान -ए -खाना की उपाधि दी। 
अलाउद्दीन आलमशाह (1445 1451 ई.)
यह इस वंश का अंतिम शासक था। इसे बहलोल लोदी ने गदी से उतर दिया  और लोदी वंश की नींव रखी। 

लोदी वंश (1451 -1526 ई.)

लोदी वंश की स्थापना बहलोल लोदी (1451 -88 ) के द्वारा की गयी थी उसने भारत में पहली बार अफगान राज्य की स्थापना की थी। 

सिकंदर लोदी (1489 -1517 )
इसने नाप के लिए एक पैमाना गजे सिकंदरी का प्रारम्भ करवाया था। उसने गुलरुखी के उपनाम से कविताएँ भी लिखी। 
इसने 1504 में आगरा नगर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया। 

इब्राहिम लोदी ( 1517 -1526 )
इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान था। इसके समय में पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर और इब्राहिम के बीच  हुआ था जिसमें  इब्राहिम लोदी की हार हुई। 


























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