असहयोग आंदोलन in HINDI



असहयोग आंदोलन

पिछले 35 वर्षों (1885 ई. से 1920 ई. तक ) से कांग्रेसी नीति पर चल रही थी । उसमें 1919 की अनेक घटनाओं ने महान परिवर्तन किया जैसे प्रथम विश्व यद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय को धोखा दिया जाना, रौलट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड, मुसलमानों द्वारा खिलाफत आंदोलन की शुरुआत इन परिस्थितियों में सितंबर 1920 में कोलकाता में कांग्रेस के द्वारा एक विशेष अधिवेशन बुलाया गया इस अधिवेशन में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा गया जो बहुमत से पास हुआ 
 दिसंबर 1920 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में इसे दोबारा मंजूरी दे दी गई । एनी बेसेंट, मोहम्मद अली जिन्ना, विपिन चंद्र पाल, शंकरन नायर ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया । 1 अगस्त 1920 को गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गई । इसी दिन बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गई । असहयोग आंदोलन को चलाने के लिए एक तिलक स्वराज फंड बनाया गया और नई-नई राष्ट्रीय संस्था का निर्माण किया गया । कांग्रेस के असहयोग कार्यक्रम में तिलक समारोह राजकोष में एक करोड़ एकत्र करने तथा संपूर्ण भारत में करीब 2000000 चरखे बांटने का कार्यक्रम शामिल किया गया । इस आंदोलन अनेक व्यक्तियों ने सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों को छोड़ा । मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, सी आर दास, सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद जैसे वकीलों ने अपनी वकालत छोड़ दी। गाँधी जी ने अपनी केसर ए हिंद की उपाधि वापस अंग्रेजी सरकार को लौटा दी।
17 नवंबर 1921 को प्रेस कॉन्फ़्रेंस के आगमन के दिन मुंबई में इसका बहिष्कार किया गया और हड़तालें की गई । सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए दमन चक्र का सहारा लिया । बड़े-बड़े नेताओं को बंदी बना लिया गया । लोगों पर तरह तरह के अत्याचार किए गए । कांग्रेस को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया गया । सरकार के दमन पूर्ण व्यवहार के कारण आंदोलन अहिंसात्मक ने रहा । अनेक जगहों पर आम जनता के द्वारा पुलिस के साथ लड़ाइयां होने शुरू हो गई । लोगों को कई महीनों तक कैद कर लिया गया । सरकार ने इस आंदोलन को जितना भी दबाने की कोशिश की आंदोलन उतना ही जोर पकड़ता चला गया । 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चोरी चोरा में घटना घटित हुई जिसमें गोरखपुर में किसानों के जुलूस पर पुलिस द्वारा गोली चलाने जाने के कारण क्रुद्ध भीड़ ने थाने में आग लगा दी । जिसमें 21 जवानों की मृत्यु हो गई । 12 फरवरी 1922 को गांधी ने अखिल भारतीय कांग्रेस की बारदोली बैठक में इस आंदोलन को वापस ले लिया । जिससे यह आंदोलन खत्म हो गया ।


असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम

1. सरकारी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार।
2. सरकारी उपाधियों तथा अवैतनिक पदों को त्यागना। 3. सरकारी दरबारों तथा उत्सवों में सम्मिलित न होना।
4. सरकारी अदालतों का बहिष्कार करना।
5. पंचायतों की स्थापना करना।
6. विदेशी माल का बहिष्कार करना और उसके स्थान पर स्वदेशी माल का प्रयोग करना ।
7. 1919 ई. के एक्ट के अनुसार होने वाले चुनावों में भाग न लेना।
8. सैनिकों, क्लकों और श्रमिकों द्वारा विदेश में नौकरी न करना।
 9. हिंदू-मुस्लिम एकता पर बल देना व अहिंसा के मार्ग पर चलना ।

असहयोग आंदोलन का महत्व 
इस आंदोलन का राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में महत्वपूर्ण कदम था इस आंदोलन में हिंदूओं, मुसलमानों, शिक्षित व अशिक्षित लोगों, अध्यापकों, छात्रों, पुरुषों और स्त्रियों ने भाग लिया । पहली बार किसी राष्ट्रीय आंदोलन में इस तरह का देशव्यापी आंदोलन का रूप धारण किया । अब लोगों ने सरकार से सीधी टक्कर लेने का जोश उत्पन्न हो गया । साथ ही साथ देश के अंदर कई रचनात्मक कार्य भी हुए जैसे राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना । वह लोगों को रोजगार प्रदान करना और लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जागृति बड़े पैमाने पर हुई ।



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