अशोक का धम्म नीति और उसकी प्रकृति in HINDI NOTES
अशोक का धम्म नीति और उसकी प्रकृति नीति
अशोक बौद्ध धर्म ग्रहण करने से पूर्व शैव था, इसकी जानकारी 'राजतरंगिणी' से प्राप्त होती है। सिंहली अनुश्रुति दीपवंश तथा महावंश बौद्ध धर्म में अशोक को दीक्षित करने का श्रेय अशोक के शासन के चौथे वर्ष सात वर्षीय निग्रोध नामक एक बौद्ध भिक्षु को देता है तथा बताता है कि तत्पश्चात् मोग्गलिपुत्ततिस्स के प्रभाव से वह पूर्णरूपेण बौद्ध बन गया, जबकि दिव्यावदान अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त को देता है।कई ऐसे तथ्य हैं जिनसे प्रमाणित होता है कि अशोक बौद्ध धर्म से प्रभावित था और उसका धम्म बौद्ध धर्म था।
1•बौद्ध तीर्थस्थलों की यात्रा करना।
2•तृतीय बौद्ध संगीति का अपने क्षेत्र में आयोजित करना।
3•बौद्ध संगीति के अन्त में अशोक के द्वारा धम्म प्रचार हेतु अनेक स्थानों पर धम्मदूत भेजा जाना।
4•अशोक, भाब्रु लेख में बुद्ध धम्म तथा संघ में विश्वास करता है।
5•सिज्म अभिलेख में वहाँ के धम्म महामात्रों को आदेश जारी किया गया है कि संघ में फूट डालने वालों को दण्डित किया जाए।
6•अशोक ने भाब्रु शिलालेख में अपने धम्म का आधार बताया है। वह राहुलोवादसूत्र या गेह विजय से लिया गया है।
7•मास्की अभिलेख में अशोक ने स्वयं को बुद्ध शाक्य कहा है।
8•अशोक बुद्ध के लिए भगवान् शब्द का प्रयोग करता है।
9•अहरौरा अभिलेख में बुद्ध के अवशेषों पर स्मारक बनवाने का जिक्र किया गया है।
10•महावंश ज्ञात होता है कि अपने अभिषेक के 18वें वर्ष अशोक ने लंका के राजा के पास भेजे गए एक सन्देश में बताया था कि वह शाक्यपुत्र गौतम बुद्ध के धर्म का एक साधारण उपासक बन गया है।
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इन सबके पश्चात् भी अशोक चार आर्य सत्य तथा अष्टांगिक मार्ग में विश्वास नहीं करता है तथा वह निर्वाण के बदले स्वर्ग की बात करता है। अतः अशोक का व्यक्तिगत धर्म बौद्ध धर्म हो सकता है, किन्तु अशोक ने धम्म की जो परिभाषा दी है एवं धम्म का जो स्वरूप पेश किया है वह नैतिक आचरणों का संग्रह है।
वास्तव में, अशोक का धम्म युगीन आवश्यकताओं के अनुकूल था। अशोक के विशाल साम्राज्य में भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी, नस्ल, समुदाय के लोग थे, जिन्हें एक मंच पर लाने के लिए एक समन्वित कार्यक्रम की आवश्यकता थी और अशोक का धम्म इसी का प्रतिबिम्बन है। रोमिला थापर ने अशोक के धम्म की तुलना अकबर की 'दीन-ए-इलाहों' से की है।
अशोक श्रमणों के अतिरिक्त ब्राह्मणों के प्रति भी आदर रखता था। अशोक ने बौद्ध धर्म के भिक्षुओं हेतु गुफा प्रदान की, तो आजीवकों को भी गुफाएँ दी थीं। इस प्रकार अशोक धर्मसहिष्णु शासक था और उसका धम्म कई धर्मों का सार था। यदि वह बौद्ध धर्म से अधिक प्रभावित दिखता है तो इसका कारण यह था कि बौद्धवाद केवल एक धार्मिक आन्दोलन ही नहीं था, बल्कि सामाजिक आन्दोलन भी था, जिससे कोई भी दूरदर्शी एवं विलक्षण शासक बच नहीं सकता था।
धम्म प्रचार के उपाय
धम्म प्रचार के उपाय निम्नलिखित है
●अशोक ने अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए जिन आचारों की संहिता प्रजा के सामने प्रस्तुत की उसे उनके अभिलेखों में धम्म कहा गया है ।
●अशोक ने धम्म की जो परिभाषा दी है वह राहुलोवाद सुत्त से ली है ।
●अशोक ने राजकीय पदाधिकारियों को भी धर्मप्रचार के कार्य में लगाया। उसने युक्त, रज्जुक तथा प्रादेशिक नामक पदाधिकारियों को जनता के बीच जाकर धर्म के प्रचार एवं उपदेश करने का आदेश दिया।
● धर्मश्रावन तथा धर्मोपदेश की व्यवस्था की गई। राज्य की ओर से जो धर्म-सम्बन्धी घोषणाएँ की जाती थीं, वे उनसे जनता को अवगत कराते थे। उसने अपने अभिषेक के 13वें वर्ष धर्ममहामात्र नामक अधिकारी, की नियुक्ति की। अशोक ने प्रचार हेतु धर्म-यात्राएँ कीं। उसने बोधगया, निग्लीवा, लुम्बिनी आदि स्थलों की यात्राएँ की तथा उसने मानव तथा पशु जाति के कल्याणार्थ अनेक कार्य किए।
●धर्मलिपियाँ खुदवाकर उपदेश एवं शिक्षाएँ दी तथा झाँकियों आदि का सहयोग लेकर उनके स्वर्गीय सुखों का प्रदर्शन करवाया, जो मनुष्य देवत्व प्राप्त करने पर स्वर्गलोक में मिलते हैं।
●सिंहली अनुश्रुतियों दीपवंश और महावंश के अनुसार अशोक के राज्यकाल में पाटलिपुत्र में बौद्ध धर्म की तृतीय संगीति हुई। इसकी अध्यक्षता मोग्गलिपुत्ततिस्स नामक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु ने की थी। इस संगीति की समाप्ति के पश्चात् भिन्न-भिन्न देशों में बौद्ध धर्म के प्रचारार्थ भिक्षु भेजे गए, जिनके नाम महावंश में इस प्रकार प्राप्त हुए हैं।
● राज्याभिषेक से सम्बंधित मास्की के लघु शिलालेख में अशोक ने स्वयं को बुद्ध शाक्य कहा है ।
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धर्म प्रचारक और उनके क्षेत्र
धर्म प्रचारक क्षेत्र
मज्झन्तिक कश्मीर तथा गन्धार
महारक्षित यवन देश
मज्झिम हिमालय देश
धर्मरक्षित अपरान्तक
महादेव महिषमण्डल
रक्षित वनवासी (उत्तरी कन्नड़)
महाधर्मरक्षित महाराष्ट्र
सोन तथा उत्तरा सुवर्णभूमि
महेन्द्र तथा संघमित्रा लंका
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