बौद्ध धर्म का उदय/बौद्ध धर्म in HINDI NOTES
बौद्ध धर्म
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय
गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु लुम्बिनी ग्राम में हुआ था ।
इनका जन्म शाक्य गण के प्रधान शुद्धोधन के घर में हुआ था ।
इनकी माता का नाम महामाया था।
जो कोलियगण की राजकुमारी थी । जन्म के सातवें दिन गौतम बुद्ध की माता का देहान्त हो जाने के कारण पालन पोषण इनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था।
इनकी मौसी के नाम से ही सिद्धार्थ का नाम गौतम पड़ा था ।
16वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ का विवाह शाक्य कुल की कन्या यशोधरा से हुआ।
जिनका बौद्ध ग्रंथों में नाम बिम्बा, गोपा, भद्कच्छना मिलता है। इन्हें एक पुत्र हुआ जिसका नाम राहुल था ।
सांसारिक सुखों से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की आयु में घर को त्याग दिया । बौद्ध धर्म में गृहत्याग को महाभिनिष्क्रमण कहा गया है ।
गृहत्याग के बाद सिद्धार्थ ने अनोमा नदी के किनारे अपने सिर को मुंडवा कर भिक्षुओं का काषाय वस्त्र धारण किया ।
छ: वर्ष तक अथक परिश्रम एवं घोर तपस्या के बाद 35वर्ष की अवस्था में सिद्धार्थ को वैशाख पूर्णिमा की रात पीपल वृक्ष के नीचे निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर ज्ञान की प्राप्ति हुई । इसी दिन से वे तथागत कहलाये।
ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ ने सबसे पहले उपदेश सारनाथ में पाँच ब्राह्मणों को दिया।जिसे बौद्ध धर्म में धर्म चक्र प्रवर्तन नाम से जाना जाता है ।
महात्मा बुद्ध ने तटस्थ एवं काल्लिक नामक दो शूद्रों को बौद्ध धर्म का प्रथम अनुयायी बनाया ।
गौतम बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिये थे।
इन्होने अपने प्रचार का केंद्र मगध को मनाया था।
बुद्ध के प्रधान शिष्य आनन्द व उपालि थे।
सारनाथ में ही बौद्ध संघ की स्थापना की गई थी ।
महात्मा बुद्ध की मृत्यु 483ई. पू. 80 वर्ष की आयु में कुशीनारा में हिरण्यवती नदी के किनारे पर हुई थी ।
बौद्ध धर्म की शिक्षाएंव एवं सिध्दान्त
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न- बुद्ध, धम्म, संघ ।
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य
1.दुःख, 2.दुःख समुदाय,
3.दुःख निरोध, 4.दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा।
दुःखों से छुटकारा पाने के बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिये हैं ।
1.सम्यक् दृष्टि, 2.सम्यक् संकल्प,
3.सम्यक् वाक्, 4.सम्यक् कर्मान्त,
5.सम्यक् आजीव, 6. सम्यक् व्यायाम,
7.सम्यक् स्मृति 8.सम्यक् समाधि।
अष्टांगिक मार्ग को भिक्षुओं का कल्याण मित्र कहा जाता है ।
बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का प्रमुख उद्देश्य निर्वाण प्राप्ति है ।
निर्वाण का अर्थ है दीपक का बुझ जाना अर्थात्जी
जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना।
बुद्ध के जीवन से सम्बंधित बौद्ध धर्म के प्रतीक
घटना प्रतीक/चिह्न
जन्म कमल व सांड
गृहत्याग घोड़ा
ज्ञान पीपल बौधि वृक्ष
निर्वाण पद चिह्न
मृत्यु स्तूप
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बौद्ध संगीतियाँ
प्रथम
स्थान राजगृह सप्तपर्णी गुफा में 483ई पू में महाकस्सप की अध्यक्षता में की गई थी ।
यह अजातशत्रु (हर्यक वंश) शासनकाल में की गई थी ।
उद्देश्य बुद्ध के उपदेशों को दो पिटकों विनय पिटक तथा सुत्त पिटक में संकलित करना था ।
द्वितीय
स्थान वैशाली में 383 ई पू में साबकमीर की अध्यक्षता में कालाशोक (शिशुपाल वंश) के शासनकाल में की गई थी ।
उद्देश्य अनुशासन को लेकर मतभेद के समाधान के लिए की गई थी । इस समय बौद्ध धर्म दो भागों में विभक्त हो गया था । स्थाविर एवं महासंघिक ।
तृतीय
स्थान पाटलिपुत्र में 251ई पू मोग्गलिपुत्ततिस्स की अध्यक्षता में अशोक के शासनकाल (मौर्य वंश) में की गई थी ।
उद्देश्य संघ भेद के विरुद्ध कठोर नियमों का प्रतिपादन करके बौद्ध धर्म को स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास किया गया । इस समय बौद्ध धर्म ग्रंथों का अंतिम रूप सम्पादन किया गया तथा तीसरा पिटक अभिधम्मपिटक जोड़ा गया था ।
चतुर्थ
स्थान कश्मीर के कुण्डलवन में लगभग ईसा की प्रथम शताब्दी में वसुमित्र एवं अश्वघोष की अध्यक्षता में कनिष्ठ( कुषाण वंश ) के शासनकाल में की गई ।
उद्देश्य बौद्ध धर्म को दो सम्प्रदायों हीनयान तथा महायान में विभाजन करना था ।
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