बौद्ध स्तूप (Bodh Stup)/बौद्ध स्तूपों की संख्या /स्तूप की परिभाषा इन हिन्दी



बौद्ध स्तूप और स्तूपों की संख्या 

स्तूप का शाब्दिक अर्थ है 'किसी वस्तु का ढेर या थूहा'। स्तूप का प्रारम्भिक उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।

● स्तूप का विकास सम्भवतः मिट्टी के ऐसे चबूतरे से हुआ जिसका निर्माण मृतक की चिता के ऊपर अथवा मृतक की चुनी हुई अस्थियों को रखने के लिए किया जाता था। स्तूपों को मुख्यतः 4 भागों में बांटा जा सकता है

●महत्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद उनकी अस्थि अवशेषों पर 8 स्तूपों का निर्माण हुआ। इन स्तूपों का निर्माण अजातशत्रु तथा इस क्षेत्र के गणराज्यों ने करवाया।
● कालांतर में मौर्य सम्राट अशोक ने 84000 स्तूपों का निर्माण सम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में कराया। 

■ स्तूपों को मुख्यतः 4 भागों में बांटा जा सकता है

1. शारीरिक स्तूप प्रधान स्तूप होते थे जिसमें बुद्ध के शरीर, धातु केश और दंत आदि को रखा जाता था।

2. पारिभोगिक स्तूप में माहत्मा बुद्ध द्वारा उपयोग की गई वस्तुओं जैसे भिक्षापात्र, चीवर, संघाटी, पादुका आदि को रखा जाता था।

3. उद्देशिका स्तूप ऐसे स्तूप होते थे जिनका सम्बन्ध बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं की स्मृति से जुड़े स्थानों से था।

4. पूजार्थक स्तूप ऐसे स्तूप होते थे जिनका निर्माण बुद्ध की श्रद्धा से वशीभूत धनवान व्यक्ति द्वारा तीर्थ स्थानों पर होता था। 
स्तूपों को मुख्यतः 4 भागों में बांटा जा सकता है   


●स्तूप के महत्वपूर्ण हिस्से इस प्रकार होते हैं।

1. वेदिका (रेलिंग) का निर्माण स्तूप की सुरक्षा के लिए होता था। 
2. मेघि (कुर्सी) - वह चबूतरा जिस पर स्तूप का मुख्य हिस्सा आधारित होता था।

3. अण्ड-स्तूप का अर्ध गोलाकार हिस्सा होता था।

4. हर्मिका – तूप के शिखर पर अस्थि की रक्षा के लिए।

5. छत्र - धार्मिक चिन्ह का प्रतीक।

6. यष्टि - छत्र को सहारा देने के लिए होता था।

7. सोपान – मेघि पर चढ़ने-उतरने हेतु सीढ़ी। 

●स्तूपों में भरहुत का स्तूप' सर्वाधिक प्राचीन स्तूप है जिसकी खोज 1873 में अलेक्जेण्डर कनिंघम ने की थी। दो शताब्दी ई० पू० के करीब निर्मित यह स्तूप मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है।

●सांची स्तूप स्तूपों में सबसे विशालु और श्रेष्ठ है इसका निर्माण मौर्य सम्राट अशोक ने करवाया था।

●सांची स्तूप मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है। इस स्तूप की खुदाई में सारिपुत्र के अवशेष मिले हैं।

● अमरावती स्तूप- आंध्र प्रदेश के गुण्टूर जिले में कृष्णा नदी के तट पर लगभग द्वितीय शताब्दी ई० पू० में बनवाया गया।
अमरावती स्तूप का प्राचीन नाम 'धान्यकटक' था। इसका निर्माण धनिकों और श्रेणी प्रमुखों के अनुदानों द्वारा सफेद संगमरमर से करवाया गया है।

● धर्मखस्तूप जिसे सारनाथ स्तूप के नाम से भी जाना जाता है का निर्माण गुप्त शासकों द्वारा करवाया गया।  यह स्तूप अन्य स्तूपों से अलग ईंटों द्वारा धरातल पर निर्मित है न कि चबूतरे पर।

●चैत्य गृह का भी बौद्ध उपासकों के लिए बड़ा महत्व था। बौद्ध धर्म में मूर्तिपूजा का विधान होने से पूर्व चैत्य गृह का निर्माण कर उनकी बुद्ध के प्रतीक के रूप में पूजा की जाती थी।
'चैत्य' का अर्थ एक पवित्र कम होता था जिसके मध्य में एक छोटा स्तूप होता था जिसे दागोब के नाम से जाना जाता था जिसकी पूजा की जाती थी।

●बौद्ध में 'विहार' का निर्माण आवासीय उद्देश्य से किया जाता था। चैत्य ग्रहों में कार्ले का चैत्य अपनी वास्तु सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध है।



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अग्रहार की परिभाषा इन हिन्दी

मनसबदारी व्यवस्था IN HINDI