स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था या जमींदारी प्रथा IN HINDI | इस्तमरारी बन्दोबस्त IN HINDI
स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था
स्थायी बंदोबस्त या इस्तमरारी बंदोबस्त ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के जमींदारों के बिच कर वसूलने से संबंधित एक स्थायी व्यवस्था के लिए सहमति समझौता था ,जिसे बंगाल में लार्ड कार्नवालिस के द्वारा 22 मार्च,1793 को लागू किया गया था। इसको बंगाल ,बिहार,उड़ीसा ,बनारस ,एवं मद्रास के उत्तरी जिलों में लागू किया गया था।
1• यह व्यवस्था जमींदारी एवं इस्तमरारी बन्दोबस्त के नाम से भी जानी जाती है। यह ब्रिटिश भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 19% भाग में लागू हुई। यह व्यवस्था बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश के वाराणसी एवं गाजीपुर तथा उत्तरी कर्नाटक के क्षेत्रों में लागू थी। गवर्नर जनरल कार्नवालिस के समय 1790 ई. में दहसाला बन्दोबस्त लागू किया गया, जिसे 1793 ई. में स्थायी बन्दोबस्त में परिवर्तित कर दिया गया। स्थायी बन्दोबस्त के लिए 1791 ई. में वसूल किए गए भू-राजस्व को आधार बनाया गया जो 2 करोड़ 68 लाख था।
2• जेम्स ग्राण्ट ने भूमि का स्वामित्व कम्पनी को जबकि जॉन शोर ने भूमि को स्वामित्व जमींदारों को सौंपने का सुझाव दिया। जॉन शोर का मानना था कि यह दस वर्षों के लिए हो, जबकि कार्नवालिस इसे स्थायी बनाने के पक्ष में था।
3.1790 ई. में इसे 10 वर्षों के लिए लागू किया गया, लेकिन 1793 ई. में इसे स्थायी कर दिया गया। जमीदारों तथा मध्यस्थों को भूमि का स्वामी बना दिया गया। अब जमीन की खरीद-बिक्री हो सकती थी। भूमि पर रैयतों का परम्परागत अधिकार समाप्त हो गया। यहाँ तक कि चारागाह, नदी, वन आदि सार्वजनिक क्षेत्र भी जमींदारी के अन्तर्गत चले गए। भू-राजस्व में जमींदार का हिस्सा 1/11 तथा सरकार का हिस्सा 10/11 निर्धारित किया गया। 1794 ई. में एक सूर्यास्त कानून पारित किया गया। इस कानून के अनुसार निश्चित तिथि को संध्याकाल तक भू-राजस्व जमा नहीं करने पर सम्बन्धित जमींदार की जमीदारी नीलाम कर दी जाती थी।
4• इस व्यवस्था के लाभ के रूप में कम्पनी की आय का एक हिस्सा निश्चित हो गया, जिस पर फसल नष्ट होने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता था। दूसरा लाभ यह हुआ कि जमींदार के रूप में कम्पनी को ऐसे वर्ग का सहयोग मिला, जो लम्बे समय तक कम्पनी के प्रति निष्ठावान बना रहा। परन्तु कृषकों को काफी कष्ट झेलना पड़ा, क्योंकि इस व्यवस्था में यह निश्चित नहीं था कि कृषकों को कितना देना था। कम्पनी की सोच थी कि कम्पनी की आय तो निश्चित हो गई, फलतः जमींदार प्रगतिशील होंगे, क्योंकि कृषि के विकास होने से लाभ जमींदारों को ही होना था, लेकिन जमींदार प्रगतिशील नहीं हो सकें।
स्थायी बन्दोवस्त के उद्देश्य -- लॉर्ड कार्नवालिस ने निम्नलिखित उद्देश्यों को सामने रख कर स्थायी बन्दोबस्त को लागू किया
(1) सरकार द्वारा स्थायी तौर पर जमींदारों से बन्दोबस्त किए जाने से उसकी आय निश्चित हो जाएगी। इस कारण एक तो कम्पनी अपनी भावी योजनाओं को व्यावहारिक रूप दे सकेगी। दूसरा, इससे सरकार बार-बार भू-राजस्व को निश्चित करने के झंझट से मुक्त हो जाएगी।
(2) जमींदारों को जिन्हें पहले केवल भू-राजस्व एकत्र करने का अधिकार था, को अब भूमि के स्वामी बना दिए जाने से वे सदैव के लिए ब्रिटिश राज्य के हितैषी बन जाएंगे। अत: ब्रिटिश सरकार किसी भी संकट के समय उनसे सहायता प्राप्त करने की उम्मीद कर सकती थी।
(3) भू-राजस्व को स्थायी निश्चित कर दिए जाने से जमादार कृषि का विस्तार करने में विशेष दिलचस्पी लेंगे। वे जंगलों को साफ करेंगे तथा बंजर भूमि को कृषि के अधीन लाने के अधिक-से-अधिक प्रयास करेंगे। इससे प्राप्त आय पर उन्हें कोई भू-राजस्व नहीं देना था। इससे कृषि में बहुत उन्नति होगी।
(4) स्थायी बन्दोबस्त के द्वारा कम्पनी शहर के अमीर वर्ग को कृषि कार्य के लिए प्रेरित कर सकेगी। इसके उसे दो लाभ होंगे। प्रथम, कृषि के विस्तार से इंग्लैण्ड के उद्योगों के लिए कच्चा माल सुगमता से मिल सकेगा। दूसरा, धनी वर्ग द्वारा कृषि के क्षेत्र में धन लगा दिए से वे औद्योगिक क्षेत्र में ऐसा नहीं कर सकेंगे। इससे अंग्रेजों का हित होगा।
4. स्थायी बन्दोवस्त की विशेषताएं - स्थायी बन्दोवस्त की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित थीं
(1) बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के जमींदारों को स्थायी रूप से भूमि का स्वामी मान लिया गया। उन्हें भूमि का पैतृक अधिकार प्राप्त हो गया।
(2) जमींदारों को भूमि के समस्त अधिकार प्राप्त हो गए। वे भूमि को बेच सकते थे अथवा उसे गिरवी रख सकते थे।
(3) जमींदारों द्वारा दिए जाने वाले भू-राजस्व को सदैव के लिए निश्चित कर दिया गया। सरकार इसमें कोई वृद्धि नहीं कर सकती थी। सरकार ने भू-राजस्व को दर 10/11 निश्चित की जमींदार अपने पास 1/11 भाग रख सकते थे।
(4) सरकार ने यह वचन दिया कि वह इस निश्चित भू-राजस्व के अतिरिक्त जमींदारों पर न तो कोई अन्य कर लगाएगी तथा न ही उनसे कोई नशराना आदि लिया जाएगा।
(5).जमींदारों को यह उत्तरदायित्व सौंपा गया कि वे पट्टे पर स्पष्ट रूप से अंकित करें कि किसान को कितनी भूमि दी जा रही है तथा इस पर उसे कितना भू-राजस्व देना होगा। इन पट्टों की अवहेलना पर किसानों को न्यायालय जाने का अधिकार होगा।
(6) जमींदारों का यह उत्तरदायित्व होगा कि वे निश्चित किया गया भू-राजस्व समय पर जमा करवाएं। ऐसा न करने की पर सरकार को यह अधिकार होगा कि वह उसकी भूमि का कुछ भाग बेच कर इस राशि को पूरा कर ले।
(7) जमींदारों को प्राप्त प्रशासनिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया।
(8) सरकार जमींदारों एवं किसानों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
(9) किसानों को भूमि सम्बन्धी जो अधिकार प्राप्त थे उन्हें उनसे वंचित कर दिया गया।
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स्थायी बन्दोबस्त के लाभ
परीवल स्मीयर पी० ई० राबर्टस, मार्शमैन, आर० सी० दत्त आदि इतिहासकारों ने कार्नवालिस के स्थायी बन्दोबस्त को बहुत प्रशंसा की है। उनके अनुसार इस बन्दोबस्त के निम्नलिखित लाभ हुए
1. सरकार की आय निश्चित हो गई —स्थायी बन्दोबस्त का सबसे बड़ा लाभ सरकार को हुआ। इस कारण उसे प्रति वर्ष एक निश्चित भू-राजस्व प्राप्त होने लगा जिससे उसकी आय निश्चित हो गई। इससे पूर्व प्रतिवर्ष भू-राजस्व के घटते-बढ़ते रहने के कारण सरकार को अन्तिम क्षण तक अपनी आय का पता नहीं चलता था। इस कारण वह प्रशासनिक कार्यों पर किए जाने वाले व्यय के सम्बन्ध में अनुमान नहीं लगा सकती थी। अब आय के निश्चित हो जाने के कारण सरकार के लिए ऐसा करना सुगम हो गया।
2. प्रशासन में कुशलता का आना —स्थायी बन्दोबस्त के कारण सरकार को समय-समय पर भूमि लगान निर्धारित करने के उत्तरदायित्व से छुटकारा मिल गया। इसके अतिरिक्त उसे लगान की वसूली के लिए बहुत-से अधिकारियों की नियुक्ति करनी पड़ती थी। अब उसे इस उलझन से भी मुक्ति मिल गई। इस कारण सरकार के लिए प्रशासन के अन्य विभागों की ओर ध्यान देना सम्भव हो सका। परिणामस्वरूप प्रशासन में अधिक कार्य कुशलता आई।
3. कृषि का उन्नत होना - स्थायी बन्दोवस्त के कारण कृषि में आश्चर्यजनक उन्नति हुई। इससे पूर्व जमींदार कृषि कार्यों में कोई रुचि नहीं लेते थे। इसका कारण यह था कि उन्हें यह भरोसा नहीं था कि अगले वर्ष भूमि उनके पास रहेगी या नहीं। परन्तु अब उन्हें सदैव के लिए भूमि का स्वामी बना दिया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें एक निश्चित भू-राजस्व ही सरकार के पास जमा करवाना होता था तथा शेष आय के मालिक वे स्वयं ही थे। परिणामस्वरूप अब उन्होंने कृषि को उन्नत करने के लिए कोई प्रयास शेषन छोड़ा। उन्होंने जंगलों को साफ किया तथा बंजर भूमि को भी कृषि योग्य बनाया। अतः चारों और फसलें लहलहाने लगी।
4.ब्रिटिश शासन को स्थिरता प्राप्त होना - अंग्रेजों ने जमींदारों को सदैव के लिए भूमि का स्वामी बना दिया था। इसलिए वे अंग्रेजों के दृढ समर्थक बन गए। उन्होंने हर संकट के समय अंग्रेजों को पूर्ण सहयोग दिया। अतः भारत में ब्रिटिश शासन को स्थिरता प्राप्त हुई।
स्थायी बन्दोवस्त की प्रशंसा करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार जे० सी० मार्शमैन का कहना है,"यह एक साहस, बहादुरी और बुद्धिमानी का कार्य था."
स्थायी बन्दोबस्त के दोष
होम्स, थॉर्नटन, सेंटन कार, आर० सी० मजूमदार, तारा चन्द तथा पी० एन० चोपड़ा आदि इतिहासकारों ने कार्नवालिस के स्थायी बन्दोवस्त को कटु आलोचना करते हुए इसे भयंकर भूल बताया। उनके अनुसार इस बन्दोबस्त के निम्नलिखित दुष्परिणाम निकले
1. आरम्भ में इसका जर्मीदारों के लिए विनाशकारी सिद्ध होना —आरम्भ में स्थायी बन्दोबस्त का जमींदारों पर बहुत विनाशकारी प्रभाव पड़ा। इसका कारण यह था कि ने भू-राजस्व की राशि बहुत अधिक निश्चित की थी। इस कारण बहुत-से जमींदार अपनी भू-राजस्व की राशि निश्चित समय तक सरकार के पास जमा नहीं करवा सके। अतः सरकार ने उनकी जमीनें बेस दो। एक अनुमान के अनुसार 1794 ई० और 1815 ई० के मध्य लगभग आधे जमींदारों को अपनी जमीनों से हाथ धीने पड़े। इस कारण ये जमींदार केवल भिखारी बन कर रह गए।
2. कृषकों के हितों की अवहेलना करना - स्थायी बन्दोवस्त का एक अन्य प्रमुख दोष यह था कि इसमें कृषकों के हितों की पूरी तरह उपेक्षा की गई थी। उन्हें समींदारों की दया पर छोड़ दिया गया था। परिणामस्वरूप जमींदारों ने किसानों पर मनमाने जुल्म कर दिए थे। वास्तव में इस बन्दोबस्त से उस रैयत (किसान) की बुरी तरह उपेक्षा की गई, जो अपने गाढ़े पसीने से वह धन पैदा करता था, जिससे जमींदारों का गुजारा चलता था और सरकार का खजाना भरता था।
3. सरकार को आर्थिक हानि —स्थायी बन्दोबस्त के कारण सरकार को भविष्य में भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ी। समय के साथ-साथ भूमि से प्राप्त होने वाली आय बढ़ती गई परन्तु सरकार अपनी लगान राशि में वृद्धि नहीं कर सकी। इस कारण स्थायी बन्दोबस्त सरकार के लिए लाभकारी सिद्ध न हुआ।
4. अनुपस्थित जमींदारों का उदय – समय के साथ-साथ कृषि में उन्नति होने के कारण जमींदारों को आप में काफ़ी वृद्धि हुई। इस कारण वे शहरों में रहने लगे तथा वहां विलासी जीवन व्यतीत करने लगे। उन्होंने अपनी भूमि का प्रबन्ध अपने कारिन्दों पर छोड़ दिया। इन कारिन्दों ने अपनी आय बढ़ाने के उद्देश्य से किसानों का अधिक शोषण आरम्भ कर दिया। इस प्रकार जहां जमींदार तो ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करने लगे वहां किसानों की दशा अधिक दयनीय हो गई।
5. अन्य वर्गों पर करों का अधिक बोझ —स्थायी बन्दोबस्त के कारण क्योंकि सरकार को प्रतिवर्ष भारी घाटा हो रहा था इसलिए उसने अपनी आय को बढ़ाने के उद्देश्य से गैर-कृषक वर्गों पर भारी कर लगा दिए। यह सरासर अनुचित तथा अन्यायपूर्ण कार्यवाही थी। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि स्थायी बन्दोबस्त के जहां लाभ हुए वहां यह हानिकारक भी सिद्ध हुआ। अन्त में हम प्रसिद्ध इतिहासकार परसीवल स्पीयर के इन शब्दों से सहमत हैं, "यद्यपि स्थायी प्रबन्ध में व्यापक त्रुटियां थीं परन्तु फिर भी इसने गांवों में शान्ति स्थापित की तथा सरकार को स्थिरता प्रदान की।
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