उत्तरकालीन मुगल शासक इन हिन्दी
उत्तरकालीन प्रमुख मुगल शासक
उत्तरकालीन 11 प्रमुख मुगल शासक रहे हैं ।
आजम
यह आलीजाह नाम से भी जाना जाता था। यह औरंगजेब की मृत्यु के समय गुजरात एवं मालवा का गवर्नर था तथा उस समय दक्षिण भारत में था।
कामबख्श
इसे औरंगजेब ने बीजापुर तथा हैदराबाद के क्षेत्र में नियुक्त किया था। इसे दीनपनाह की उपाधि दी गई। औरंगजेब की मृत्यु के समय यह बीजापुर में था । माना जाता है कि औरंगजेब ने एक वसीयत छोड़ी थी, जिसके अनुसार बीजापुर तथा हैदराबाद का क्षेत्र कामबख्श को मिलना था, मुअज्जम को 11 राज्य मिलने थे तथा राजधानी दिल्ली होनी थी। आजम को 8 राज्य मिलने थे तथा राजधानी आगरा होनी थी।
1707 ई. में जाजू की लड़ाई में आजम को मुअज्जम ने परास्त किया तथा मुअज्जम ने बहादुरशाह प्रथम एवं शाहआलम प्रथम के नाम से खुद को शासक घोषित किया। इस समय उसकी आयु 65 वर्ष थी।
बहादुर शाह प्रथम ( 1707 से 1712)
बहादुर शाह प्रथम आलम प्रथम जिसने मेल मिलाप की नीति अपनाई बहादुर शाह प्रथम शिवाजी के पुत्र साहू को जो 1689 में मुगलों के पास केंद्र था उसको मुक्त कर दिया गया और महाराष्ट्र जाने की अनुमति दे दी बहादुर शाह प्रथम ने गुरु गोविंद सिंह को 5000 का मन सब दिया था और इसने जो है जाट सरदार जुड़ा मन से भी मित्र संधि मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए थे मराठों को दक्कन के एरिया में सरदेशमुखी का अधिकार दे दिया लेकिन चौथ का अधिकार नहीं दिया बहादुर शाह प्रथम ने अपने समय में जा अंधाधुन जागीर एवं पदोन्नति देने के कारण इसका राजकीय का खजाना खाली हो गया था शाही खजाने में 1707 में मात्र ₹130000000 करोड़ रह गए थे और देश के प्रशासन एवं सुरक्षा में उसने इतनी लापरवाही दिखाई कि इसे शाहे बेखबर के नाम से जाना जाने लगा बहादुर शाह प्रथम के 4 पुत्र थे बहादुरशाह प्रथम की मृत्यु के बाद भी उत्तराधिकारी युद्ध के लिए लड़ाई हुई । उत्तराधिकारी के युद्ध के समापन तक बहादुर शाह प्रथम कार्य 1 महीने तक बिना दफनाए हुए ही पड़ा रहा युद्ध समापन के बाद इसे जो है दिल्ली के अंदर दफनाया गया
सिडनी ओवन के अनुसार यह अंतिम मुगल बादशाह था जिसके बारे में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं
जहाँदारशाह (1712-1713)
उत्तराधिकार की लड़ाई में जहांदारशाह ईरानी दल के नेता जुल्फिकार कहां की सहायता से गति प्राप्त करने में सफल रहा । यह मुगल वंश का पहला कठपुतली शासक था । इसने अपने समय में जजिया कर समाप्त कर दिया । इसने मिर्जा राजा जयसिंह को मालवा की सुबेदारी दी थी । मारवाड़ के अजीत सिंह को महाराजा की पदवी दी और उसे गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया । अत्यंत भ्रष्ट एवं नैतिक आचरण के कारण इसे लंपट मूर्ख कहा गया । यहां दार जहां पर उसकी प्रेमिका लाल कुंवर का काफी प्रभाव था । इसने अपने समय में इजारा व्यवस्था की शुरुआत की थी ।
अजीमुश्शान के पुत्र फर्रूखसियर ने हिंदुस्तान अमीर सैयद बंधुओं के सहयोग से ज्यादा चाहा को पद से हटा दिया और उसकी हत्या कर दी।
फर्रूखसियर (1713 - 1719 )
फर्रूखसियर अमीर वर्ग से यादव बंधुओं की सहायता से बद्दी प्राप्त करने में सफल रहा इसने हुसैन अली को पटना का उप गवर्नर बनाया और अब्दुल्ला खाँ को इलाहाबाद का गवर्नर बनाया 1717 में फर्रूखसियर ने ₹3000 वार्षिक कर के बदले बंगाल में व्यापार का अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया फर्रूखसियर को घृणित कायर का जाता है। फारुखसियर ने गद्दी पर बैठते जजिया कर समाप्त कर दिया और तीर्थ यात्रा कर भी कई जगह से हटा लिया गया । इसके समय में सैयद बंधुओं की शक्ति बहुत ज्यादा बढ़ गई थी सैयद बंधुओं ने मराठों को सरदेशमुखी और चौथ वसूलने का अधिकार दिया । फर्रूखसियर के समय 1716 में बंदा बहादुर को दिल्ली में फांसी दे दी गई । सैयद हुसैन अली ने 1719 में पेशवा बालाजी विश्वनाथ से दिल्ली की संधि द्वारा मराठों से सैन्य सहायता लेकर फर्रूखसियर को पद से हटा दिया और उसे अंधा करके 10 दिन बाद उसकी हत्या कर दी ।
रफी-उद-दाजात ( 28फरवरी से 4जून,1719) - फर्रूखसियर को गद्दी से हटाने के बाद सैयद बन्धुओं ने रफी-उद-दाजात को गद्दी पर बैठाया । इसकी मृत्यु क्षय रोगके कारण हो गई ।
रफीउद्दौला (6जून से 17सितम्बर,1719) - रफी-उद-दाजात बाद रफीउद्दौला शाहजहाँ ए सानी की उपाधि के साथ गद्दी पर बैठाया । इसे शाहजहाँ द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है। इसकी भी क्षय रोग से मृत्यु हो गई।
मोहम्मद शाह 1719 से 1748 - यह बहादुरशाह के सबसे छोटे बेटे जहान शाह का पुत्र था । अत्यंत विलासिता पूर्ण जीवन व्यतीत करता था जिसके कारण से लोगों ने रंगीला की उपाधि दे दी । इसी के काल में सैयद बंधुओं का अंत हो गया था । मोहम्मद शाह के काल में निजाम उल मुल्क ने हैदराबाद राज्य की नींव रखी । मुहम्मद शाह के समय में बंगाल, बिहार और उड़ीसा स्वतंत्र हो गए । फारस के शासक नादिरशाह ने 1739 में दिल्ली पर आक्रमण कर दिया नादिर शाह 57 दिन तक दिल्ली में रहा और लगातार लूटपाट करता रहा । नादिरशाह प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा तथा शाहजहां का रत्नजडित मयूर सिंहासन तख्ते ताऊस अपने साथ ले गया ।
अहमद शाह 1748 ईस्वी से 1754
मोहम्मद शाह की मृत्यु के बाद अहमद शाह गद्दी पर बैठा इसके समय में 1748 में अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया । इस समय में मुगल अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई । इसी के समय में सेना को वेतन मिलने की वजह से शाही समान बिकने लगा तथा कई जगह वेतन न मिलने से सेना ने विद्रोह कर दिया । आज के समय में राजकीय कामकाज का नेतृत्व राजमाता उधम भाई कर रही थी ।
आलमगीर द्वितीय (1754 ई० से 1758 ई०)
इसका नाम अजीजुद्दीन था। इसके काल में अब्दाली दिल्ली तक चढ़ आया। इसके समय में प्लासी का युध्द लड़ा गया था ।
शाहजहाँ तृतीय (1758 ई० से 1759 ई०) आलमगीर द्वितीय की हत्या के समय उसका पुत्र अलीगोहर बिहार में था, जहाँ इसने शाहआलम द्वितीय के नाम से स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया।
शाहआलम द्वितीय (1759 ई० से 1806 ई०)
इसका नाम अलीगोहर था। इसके समय में पानीपत का तृतीय युद्ध (1761 ई० में) तथा बक्सर का युद्ध (1764 ई० में) हुआ। शाह आलम द्वितीय ने ही क्लाइव को बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा की दीवानी प्रदान की। 1765 ई० से 1772 ई० तक यह अंग्रेजों के संरक्षण में इलाहाबाद में रहा।
1772 ई० में मराठों के संरक्षण में दिल्ली पहुंचा तथा 1803 ई० तक उनका संरक्षण स्वीकार किया। गुलाम कादिर ने 1788 ई० में शाह आलम द्वितीय को अन्धा बना दिया। 1803 ई० में अंग्रेज सेनापति लेक ने दौलत राव सिन्धिया को पराजित किया तथा शाहआलम द्वितीय ने अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार कर लिया। इस तरह दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया तथा मुगल सम्राट अंग्रेजों के पेंशनर बन गए। 1806 ई० में शाह आलम द्वितीय की हत्या हो गई।
अकबर द्वितीय (1806 ई० से 1837 ई०) अकबर द्वितीय ने राममोहन राय को राजा की उपाधि दी। इसी के समय में 1835 ई• में मुगलों के सिक्के बन्द हो गए।
बहादुरशाह द्वितीय (1837 ई० से 1857 ई०)
यह अन्तिम मुगल बादशाह था। जफर इसका उपनाम था। 1857 ई० के विद्रोह के बाद इसे बन्दी बना लिया गया, लेकिन कानूनी रूप से मुगल साम्राज्य 1 नवम्बर, 1858 ई० को महारानी विक्टोरिया के घोषणापत्र से समाप्त हो गया। बहादुरशाह जफर को निर्वासित कर रंगून भेज दिया गया जहाँ 1862 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।
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