1833 का चार्टर एक्ट इन हिन्दी
1833 का चार्टर एक्ट
1. इस एक्ट ने कम्पनी को अगले 20 वर्षों के लिए नया जीवन दिया। तथा उसे एक ट्रस्टी के रूप में प्रतिष्ठित किया। कम्पनी के वाणिज्यिक अधिकार समाप्त कर दिये गये, तथा उसे भविष्य में केवल राजनैतिक कार्य ही करने थे।
2. इस अधिनियम ने कम्पनी के डायरेक्टरों के संरक्षण को कम किया।
3. इस अधिनियम के द्वारा भारतीय प्रशासन का केन्द्रीयकरण किया गया।
4. बंगाल का गवर्नर अब भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
5. सपरिषद गवर्नर जनरल को कम्पनी के सैनिक तथा असैनिक कार्य का नियंत्रण निरीक्षण तथा निर्देशन सौंपा गया।
6. इस अधिनियम द्वारा भारत में दासता को अवैध घोषित किया गया।
7. अब सभी कर सपरिषद गवर्नर-जनरल की आज्ञा से ही लगाये जा सकते थे। इस प्रकार प्रशासन तथा वित्त की सारी शक्ति गवर्नर जनरल और उसकी परिषद में केन्द्रित हो गयी।
8. इस अधिनियम के द्वारा कानून बनाने के लिए गवर्नर-जनरल की परिषद में एक कानूनी सदस्य चौथे सदस्य के रूप में सम्मिलित किया गया।
9. सर्वप्रथम मेकाले को विधि सदस्य के रूप में गवर्नर जनरल की परिषद में सम्मिलित किया गया। केवल सपरिषद गवर्नर-जनरल को ही भारत के लिए कानून बनाने के अधिकार प्राप्त थे।
10. भारतीय कानूनों को संचित लिपिबद्ध तथा सुधारने के उद्देश्य से एक विधि आयोग का गठन किया गया।
11. इस अधिनियम के द्वारा कम्पनी के चीन से व्यापार तथा चाय सम्बन्धी व्यापार के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया।
12. गवर्नर-जनरल को ही विधि आयुक्त को नियुक्त करने का अधिकार प्रदान किया गया।
13. इस अधिनियम के द्वारा नियुक्तियों के लिए योग्यता सम्बन्धी मापदंड को अपना कर, भेदभाव समाप्त किया गया।
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