प्राचीन काल में विवाह के प्रकार in HINDI
प्राचीन भारत में विवाह के प्रकार
● प्राचीन भारत में विवाह को एक धार्मिक कृत्य एवं एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है।
मनुस्मृति में विवाह के चार उद्देश्यों का उल्लेख किया गया है- (1) अपत्य या सन्तानोत्पत्ति, (2) धर्मकार्य एवं याज्ञिक अनुष्ठान आदि, (3) काम एवं (4) पितृ ऋण से मुक्ति।
● ऐतरेय ब्राह्मण- में पुत्र को संसार सागर पार करने वाली तरिणी या नौका कहा गया है।
●मनुस्मृति के अनुसार पुत्र ही पिता का मोक्षदाता है। • प्राचीन धर्म शास्त्रों एवं स्मृतियों में सगोत्र, सपिण्ड एवं सप्रवर विवाहों का निषेध किया गया है।
●मौर्यकाल में विवाह की आयु लड़के की 16 वर्ष तथा लड़की की 12 वर्ष की मानी गयी थी।
●स्मृतियों, धर्मशास्त्रों एवं कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख किया गया है। इन आठ विवाहों का उल्लेख निम्न है।
1. प्रजापत्य विवाह- जब वर-वधू धर्म का आचरण करते हुए विवाह करते हैं। इस विवाह के अन्तर्गत कन्या का पिता वर को कन्या प्रदान करते हुए सामाजिक एवं धार्मिक कर्त्तव्यों का निर्वाहन करता है।
2. आर्ष विवाह- कन्या के पिता वर को कन्या प्रदान करने के बदले में एक जोड़ी गाय और बैल प्राप्त करता है।
3. दैव विवाह- जो पुरोहित यज्ञ का अनुष्ठान विधि पूर्वक करा लेता था उसी के साथ कन्या का विवाह कर दिया जाता था।
4. ब्रह्म विवाह- इस विवाह को सर्वोत्तम माना गया है। इसमें लड़की का पिता वेदज्ञ एवं शीलवान वर ढूँढ़ता है। भारत में आधुनिक विवाह अधिकांशत: इसी प्रकार होता था।
5. गन्धर्व विवाह-यह प्रणय विवाह था। इसमें वर एवं कन्या एक दूसरे से अनुरक्त होकर अपना विवाह कर लेते थे।
6. आसुर विवाह- इसमें कन्या का पिता अथवा उसके सम्बन्धी धन लेकर कन्या का विवाह करते थे। यह एक प्रकार से कन्या की बिक्री थी।
7. राक्षस विवाह - बल पूर्वक कन्या का अपहरण करके उसके साथ विवाह करना। महाभारत में 'क्षत्र धर्म' कहा गया है।
8. पैशाच विवाह - यह विवाह का निकृष्टतम् प्रकार है जिसकी सभी शास्त्रकारों ने निन्दा की है। इसमें वर छल, छदम के द्वारा कन्या के शरीर पर अधिकार कर लेता था।
●इसमें चार प्रकार के विवाह (ब्रह्म, प्रजापत्य, आर्ष एवं दैव) को धर्मानुकूल माना गया है।
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